स्वरांजली....शब्दों की गूँज

शब्द शस्त्र को परास्त करें, शब्द बिना अस्त्र ही वार करें शब्द दुश्मन को यार करें, आओ मिल कर हम इन शब्दों की गूँज इस बार करें #स्वरा #SKG

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Wednesday, July 18, 2018

मस्तानी जी द्वारा सप्तरंग-३ में रचना



शीर्षक:- 
हम किस समाज में जी रहे हैं..!!
★★★

जिंदा थे तो किसी ने पास भी ना बिठाया
अब सब मेरे चारों ओर बैठे जा रहे हैं 
ये कैसे समाज में हम जिए जा रहे हैं

पहले तो कभी किसी ने हमारा हाल भी न पूछा था
अब गम के आँसू हमारे लिए बहाये जा रहे हैं
 ये कैसे समाज में हम जिए जा रहे हैं

जिंदा थे जब एक उपहार भी भेंट किया कभी किसी ने
 अब नये-नये कफन ओढ़ाये जा रहे हैं              
 ये कैसे समाज में हम जिए जा रहे हैं

सबको पता है कफन लाने में होगा उनका खर्च पैसा
लेकिन फिर भी दुनियादारी निभाये जा रहे हैं
  ये कैसे समाज में हम जिए जा रहे हैं

फिरते थे भूखे एक वक्त की रोटी को हम जब कोई नहीं पूछता था
 अब देसी घी मेरी चिता पर डाले जा रहे हैं
 ये कैसे समाज में हम जिए जा रहे हैं

अकेले रहे तनहा उम्र भर ना साथ चला कोई
अब मेरी अर्थी को फूलों से सजा कर कंधों पर उठाए जा रहे हैं
  ये कैसे समाज में हम जिए जा रहे हैं

जिंदगी में सबसे ज्यादा दर्द दुनिया ही देती है
फिर भी ऐसी दुनिया पर भरोसा किये जा रहे हैं
 ये कैसे समाज में हम जिए जा रहे हैं

अब जान गए हम मौत जिंदगी से बेहद हसीन होती है
और लोग बेकार ही जिंदगी की चाहत किये जा रहे हैं
  ये कैसे समाज में हम जिए जा रहे   हैं !!

★★★
©
कवयित्री:- मस्तानी जी✍

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