★★★
....................
तिरंगा जब लहराता है शान से उन्मुक्त गगन में,
सीना गर्व से तन जाता है माँ भारती के नमन में,
गगन चुंबी ऊँचाई को जब भारत का गौरव छूता है,
कहीं दिल में इक देशभक्त पैदा होता है,
मेरे लिए स्वतंत्रता है जब रातों को निडर हो निकलूँ ,
पुरुषप्रधान समाज में न कठपुतली सी डोर से नाचूँ,
स्वाभिमान को कभी आँच न पहुँचे,
ज़ालिम न किसी की इज़्ज़त को नोचे,
हुआ भारत स्वाधीन पर मेरे लिए स्वतंत्रता है
जब न हो स्त्री किसी के अधीन,
चाँद को भले ही छू आया मानव,
स्त्री की इज़्ज़त पर होता तांडव,
बेज़ार होती हैं मासूम बच्चियाँ,
लाश पे जिनकी सिकती सत्ता की रोटियाँ,
ला दो मुझे वो छुपी सोने की चिड़िया कहीं से,
मेरे लिए स्वतंत्रता है प्रारम्भ वहीं से।
......
#स्वरा
★★★
©
कवयित्री:-स्वीटी गुप्ता जी✍
★★★
....................
तिरंगा जब लहराता है शान से उन्मुक्त गगन में,सीना गर्व से तन जाता है माँ भारती के नमन में,
गगन चुंबी ऊँचाई को जब भारत का गौरव छूता है,
कहीं दिल में इक देशभक्त पैदा होता है,
मेरे लिए स्वतंत्रता है जब रातों को निडर हो निकलूँ ,
पुरुषप्रधान समाज में न कठपुतली सी डोर से नाचूँ,
स्वाभिमान को कभी आँच न पहुँचे,
ज़ालिम न किसी की इज़्ज़त को नोचे,
हुआ भारत स्वाधीन पर मेरे लिए स्वतंत्रता है
जब न हो स्त्री किसी के अधीन,
चाँद को भले ही छू आया मानव,
स्त्री की इज़्ज़त पर होता तांडव,
बेज़ार होती हैं मासूम बच्चियाँ,
लाश पे जिनकी सिकती सत्ता की रोटियाँ,
ला दो मुझे वो छुपी सोने की चिड़िया कहीं से,
मेरे लिए स्वतंत्रता है प्रारम्भ वहीं से।
......
#स्वरा
★★★
©
कवयित्री:-स्वीटी गुप्ता जी✍
No comments:
Post a Comment