★★★
....................
सुनो-
तुमने हर बार मुझमें केवल
कमियों को ही ढूंढा,
अपने अधूरे अहसासों को
छिपाने के लिए..!
न तुम पूर्ण हो न ही मैं क्यों कि
#कौन_है_जिसमें_कोई_कमी_न_हो ..!
जरूरतें जिन्दगी हैं प्यार नहीं
यथार्थ जरूरी है संवेदना नहीं ..!
यही आज के समय की पूर्णता है
ऐसा कहने वालोँ ये भी तो कहो
#कौन_है_जिसमें_कोई_कमी_न_हो ..!!
रिश्ते ही जीवन है,
संतान से ही परिवार है
परिवार से समाज है
जाति ही सबकी पहचान है
ऐसी सोच न रखें
क्यों कि पूर्णता भी कहती हैं-
#कौन_है_जिसमें_कोई_न_हो..!!
......
#स्वरा
★★★
©
रचनाकार(कवि):-मोहनलाल भाया जी✍
★★★
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सुनो-
तुमने हर बार मुझमें केवल
कमियों को ही ढूंढा,
अपने अधूरे अहसासों को
छिपाने के लिए..!
न तुम पूर्ण हो न ही मैं क्यों कि
#कौन_है_जिसमें_कोई_कमी_न_हो ..!
जरूरतें जिन्दगी हैं प्यार नहीं
यथार्थ जरूरी है संवेदना नहीं ..!
यही आज के समय की पूर्णता है
ऐसा कहने वालोँ ये भी तो कहो
#कौन_है_जिसमें_कोई_कमी_न_हो ..!!
रिश्ते ही जीवन है,
संतान से ही परिवार है
परिवार से समाज है
जाति ही सबकी पहचान है
ऐसी सोच न रखें
क्यों कि पूर्णता भी कहती हैं-
#कौन_है_जिसमें_कोई_न_हो..!!
......
सुनो-
तुमने हर बार मुझमें केवल
कमियों को ही ढूंढा,
अपने अधूरे अहसासों को
छिपाने के लिए..!
न तुम पूर्ण हो न ही मैं क्यों कि
#कौन_है_जिसमें_कोई_कमी_न_हो ..!
जरूरतें जिन्दगी हैं प्यार नहीं
यथार्थ जरूरी है संवेदना नहीं ..!
यही आज के समय की पूर्णता है
ऐसा कहने वालोँ ये भी तो कहो
#कौन_है_जिसमें_कोई_कमी_न_हो ..!!
रिश्ते ही जीवन है,
संतान से ही परिवार है
परिवार से समाज है
जाति ही सबकी पहचान है
ऐसी सोच न रखें
क्यों कि पूर्णता भी कहती हैं-
#कौन_है_जिसमें_कोई_न_हो..!!
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#स्वरा
★★★
©
रचनाकार(कवि):-मोहनलाल भाया जी✍
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